Tuesday, December 7, 2010

दंगा पीड़ित महिलायों का पत्र

सन १९२१ में केरल राज्य में साम्प्रदायिक दंगे भड़के थे जो मोहन दास गाँधी की मूर्खता, राजनैतिक महत्वाकांक्षा अथवा धूर्तता का परिणाम थे. ये दंगे कई महीनों तक चले थे और एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र में थे इसलिए इस का परिणाम हिंदुयों को और विशेषतया हिन्दू महिलायों को भुगतना पड़ा था. निम्नलिखित पत्र केरल राज्य के मालाबार क्षेत्र की महिलायों ने वहाँ भड़के हिन्दू मुस्लिम दंगों के उपरान्त भारत के वाइसरॉय की पत्नी 'लेडी रीडिंग' को अपनी व्यथा बताने के लिए लिखा था.

सेवा में:
लेडी रीडिंग,
दिल्ली

मालाबार की शोकग्रस्त और वंचित महिलायों की और से एक विनम्र स्मृतिपत्र

हम, मालाबार के भिन्न भिन्न स्थितियों और श्रेणियों की हिन्दू महिलायें, जो पिछले कुछ समय की 'मोपला विद्रोह' नामक विपत्ति से परेशान और अभिभूत हैं, आप से सहानुभूति तथा सहायता के लिए याचना कर रही हैं.

निःसंदेह आप इस तथ्य से अवगत हैं कि हमारे मंडल में यूं तो गत १०० वर्षों में कई मोपला प्रकोप हो चुके हैं, किन्तु वर्तमान विद्रोह की न तो भीषणता का कोई सानी है और न ही इस की भयंकरता का. कदाचित आप इस की भीषणता से और इन पैशाचिक विद्रोहियों द्वारा की गयी बर्बरता और अत्याचारों की सीमा से अवगत नहीं हैं. 
न ही उन कुओं और तालाबों से जो हमारे उन प्रियजनों के अर्ध मृत शरीरों से भरे पड़े हैं जिन्होंने अपने पूर्वजों के धर्म और पूजा पद्दति को छोड़ने से इनकार कर दिया. 
न उन गर्भवती महिलायों से जिन्हें टुकड़े कर के सड़क के किनारे जंगलों में फेंक दिया जिनके विकृत शवों में से अजन्मे बच्चे बाहर दीख पड़ते थे.
न उन असहाय और निरपराध बच्चों से जिन्हें हमारी बाहों से छीन कर हमारी आँखों के सामने मार दिया गया.
न हमारे उन पिता और पति से जिन्हें जीवित जला दिया गया अथवा खाल उतार ली गयी.
न हमारी उन अभागी बहनों से जिन्हें बलपूर्वक हमारे बीच में से उठा कर वो सब शर्मनाक और नीच कृत्य किये गए जो इन अमानवीय दरिंदों का घिनौना और क्रूर मस्तिष्क कल्पना कर सकता है.
न हमारे उन हज़ारों घरों को जिन्हें बर्बरता से राख का ढेर कर दिया गया है.
न हमारे पूजा स्थलों से जिन्हें अपवित्र अथवा नष्ट कर दिया गया है और देवतायों की मूर्तियों पर जहां पुष्पमालाएँ डाली जाती थीं, गाय की आंतें माला की भांति डाल कर अपमान किया गया है अथवा तोड़ दी गयी हैं.
न उन पुरुषों से जिन का परिश्रम से अर्जित धन और पीढ़ियों की सम्पति लूट कर संपन्न व्यक्तियों को कालीकट की गलियों में भीख मांगने पर विवश कर दिया गया है. 
ये  कल्पित कथाएं नहीं हैं.
सड़ांध मारते नर कंकालों से भरे कुंएं, वो अवशेष जो कभी हमारे घर थे, वो पत्थरों के ढेर जो कभी हमारे पूजा स्थल होते थे अभी भी प्रमाण के रूप में उपस्थित हैं. हमारे मार दिए गए बच्चों की मरते समय की पीड़ा की आहें अभी भी हमारे कानों में सुनाई पड़ती हैं और जीवन भर हमें सुनती रहेंगी जब तक मृत्यु हमें शान्ति नहीं दे देगी. हमें स्मरण है कि किस प्रकार जब हमें हमारी बस्ती में से भगा दिया गया और हम भूखे और नग्न जंगलों में भटकती रहीं. हमें स्मरण है कि किस प्रकार हम ने अपने बच्चों के रोने को घोंट दिया ताकि कहीं उन के रोने से हमारे निर्दयी शत्रुओं को हमारे छिपने के स्थान का पता न लग जाए. हम उन हज़ारों की आध्यात्मिक और नैतिक दुविधा को समझ सकते हैं जिन्हें बलात इन वहशी असामाजिक तत्त्वों का संप्रदाय अपनाना पड़ा. अभी भी हमारे सामने हमारी उन अभागी बहनों का जीवन है जो सभ्रांत घरों में पली और बढ़ी हैं किन्तु अब इन दुर्दांत कुलियों से ब्याह दी गयी हैं. सौभाग्यवश इन की गिनती कम है. 
पाच माह से एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब कोई भयावह घटना न हुई हो.
हमने  बिना अतिश्योक्ति किये सब बताने की चेष्टा की है ताकि आप को कुछ अनुमान दे सकें कि हमारे जैसे हज़ारों बहनों को गत पांच महीनों में किस प्रकार की भयावह परिस्थितियों से सामना करना पड़ा है जिसे खिलाफत के नाम से आरम्भ किया गया था.
हम, शोक ग्रस्त याची, कोई प्रतिशोध नहीं चाहते. इस वहशी और क्रूर संप्रदाय पर विपत्ति ला कर हमारी विपत्ति कम नहीं हो जायेगी और न ही हमारे मृत प्रियजन लौट आयेंगे यदि उनके हत्यारों की हत्या कर दी जाए.
यदि हम  कहें कि हम कभी इस सम्प्रदाय, जिस से हमने सदा मैत्रीपूर्ण और पडोसी वत व्यवहार किया, द्वारा किये गए घिनौने और लज्जाजनक अत्याचार को भुला पायेंगे तो वो पाखण्ड होगा. हमारी याचना है कि हमारी संपत्ति लूट कर जो दरिद्रता हम पर थोप दी गयी है, उसके लिए हमें कुछ क्षतिपूर्ति प्रदान की जाए. हम मूर्ख होंगे यदि इस सम्प्रदाय के असामाजिक रुझान और सांप्रदायिक कट्टरता को जान लेने के पश्चात् भी इस न्यायप्रिय और सशक्त शासन द्वारा आपकी बहनों की लाज और जीवन बचाने के लिए प्रार्थना नहीं करते जो विद्रोहियों द्वारा नष्ट किये क्षेत्र में हैं.
हमारी इच्छा केवल इतनी सी है कि हमें इतनी क्षतिपूर्ति दी जाये जिस से हम अपनी और अपने बच्चों की भूख से रक्षा कर सकें और  हमारी जान और लाज की रक्षा के लिए समुचित सेना की व्यवस्था कर दी जाए. हमारा आप से निवेदन है कि सरकार पर अपने दयालु प्रभाव से हमारी प्रार्थना स्वीकार करवाएं. यदि सौम्य सरकार ऐसा समझती है कि हमारी क्षतिपूर्ति और सुरक्षा करने में असमर्थ है तो हमारी प्रार्थना है कि हमें आस पास के क्षेत्र में भूमि का आबंटन किया जाए जहां प्रकृति की उपज भले ही कम हो किन्तु बर्बरता से सुरक्षित हो. 
हम आप से भिक्षा मांगते हैं और सदा आप के विनम्र और आज्ञाकारी दास रहेंगे.